हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 210

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य


राम और कृष्ण को अलग-अलग इष्ट रूप में ग्रहण करके सगुण भक्ति साहित्य, राम-भक्ति शाखा, और कृष्ण-भक्ति शाखा में बँटा हुआ है। राम-भक्ति शाखा में लोक और वेद की मर्यादाओं को स्वीकार करके श्रीराम के चरित्र का वर्णन किया गया है। कृष्ण भक्ति शाखा श्रीकृष्ण के स्वच्छन्द प्रेम-स्वरूप को लेकर चलती है और प्रेम-बंधन के अतिरिक्त अन्य किसी बंधन को स्वीकार नहीं करती। राम-भक्ति-शाखा का सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ ‘रामचरितमानस’ है जो अपनी विमल भक्ति और अनुपम उदारता के लिये प्रसिद्ध है। तुलसीदास के राम परम प्रेमास्पद होने के साथ आदर्श लोक नायक हैं। गीता में अवतार के जो तीन प्रयोजन-साधु परित्राण, दुष्ट-नाश और धर्म-संस्थापन बतलाये गये हैं, उनके चरित्र में सम्पूर्णतया चरितार्थ हुए हैं। श्रीराम के चरित्र में प्रेम की कोमल वृत्तियों के साथ कर्तव्य की निर्मम कठोरता समावेश है और व्यक्ति सुख-दुख के ऊपर समाज का व्यापक हित प्रतिष्ठित है। बहुत दिनों से यह चरित्र भारतीय कवि गायकों का आकर्षण बना हुआ है किन्तु इसका रूप जैसा ‘रामचरित्रमानस’ में निखरा है, वैसा अन्यत्र नहीं। राम को पाकर तुलसीदास धन्य हैं और तुलसी को पाकर राम कृत-कार्य हैं, इन दोनों को पाकर हिन्दू समाज सम्मानपूर्वक जीवित है। ‘रामचरितमानस’ में उस भारतीय जीवन से सुगठित चित्र हैं जिसमें प्रेम भी है और कलह भी और जिसका पर्यवसान शाश्वत मांगलिकता में है। दुर्बल और विच्छिन्न हिन्दू समाज को इस ग्रन्थ से नवीन प्रेरणा मिली, और उसके अन्दर एक नवीन आत्म-विश्वास का उदय हुआ। पराजित और पराधीन होते हुए भी इस समाज का विजय-स्वप्न नष्ट नहीं होने पाया और वह प्रतिवर्ष उत्साह के साथ दानवता के ऊपर मनुष्यता की विजय का उत्सव मनाता रहा है। इन कार्यों को करने वाली प्रतिभा सामान्य नहीं हो सकती। साहित्यिक दृष्टि से भी ‘रामचरितमानस’ की गणना संसार के गिने-चुने महाकाव्यों में की जाती है। इसमें भाषा का अनुपम श्रृंगार हुआ है और भाव को अनुपम सुषमा मिली है।

गो. तुलसीदास का समन्वयात्मक दृष्टिकोण प्रसिद्ध है। वे भारतीय संस्कृति की सहज समन्वयात्मक प्रवृत्ति के प्रतीक है। सर्वथा सगुणोपासक होते हुए भी वे अपनी उपासना में निर्गुण का समन्वय करने को तैयार हैं। उनका राम-नाम निर्गुण और सगुण के स्वर्ण-संपुट में शोभा देने वाला सुन्दर रत्न है।

हृदय अगुन नैननि सगुन रसना राजत नाम।
मनहुँ पुरट संपुट लसत तुलसी रतन ललाम।।

तुसलीदास जी के बाद इस शाखा में कोई असाधारण शेमुषी-संपन्न कवि नहीं हुआ और बाद के लोग इनही की छाया में बैठकर रामगुण गान करते रहें।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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