श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
वाणी
वन्दौं सुमति रसज्ञ जन अति करुना के एैन। रसिकों ने अनेक रूपकों से वाणी के स्वरूप को स्पष्ट किया है। श्री प्रियादास कहते हैं ‘प्रेम जब मेघ के समान हृदय मे गरज उठता है जो उसकी सार रूप वाणी विद्युत की भाँति मन, बुद्धि और चित्त के ऊपर गिर कर बड़ी गहरी चोट पहुँचाती है।’ प्रेम गरजि हिय में उठ्यौ बानी बिजुरी सार। श्री चाचाजी कहते हैं ‘वाणी प्रेम के द्वारा भेजी हुई वह पाती[2] है जिसमें सब बातें विस्तार पूर्वक एवं सुन्दर ढंग से लिखी हुई हैं। इस पाती को पढ़कर और समझ कर जो चलते हैं वे प्रियतम के घर पहुँचते हैं।’ बानी पाती प्रेम की ब्यौरौ लिख्यौ बनाइ। हम देख चुके हैं कि राधावल्लभीय उपासना का लक्ष्य सखी भाव की प्राप्ति कराना है। सखियाँ श्यामा-श्याम के पारस्परिक प्रेम से आसक्त हैं और सदैव उसी का भजन करती रहती हैं। सखियों के भजन को प्रेम-भजन, प्रेम का भजन, कहते हैं। इस भजन की श्रेष्ठता इस बात से समझी जा सकती है कि जो प्रेम थोड़ा-सा भी भजन के साथ मिलकर उसको स्वाद युक्त और श्रेष्ठ बना देता है वही इसमें आस्वाद्य बनता है, उसी का इसमें भजन किया जाता है। भजन के अनेक प्रकार हैं किन्तु वे सब इस प्रेम भजन के दास हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज