श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
वाणी
बात रूप जबही ते चीन्हा, नैंननि कानन नाता कीन्हा। चाचा हित वृन्दावनदास ने उन करुणा अयन-रसज्ञ जनों की वंदना की है जिन्होंने श्री युगल से मिलने के लिये वाणी रूपी नेत्र बनाये हैं। इन नेत्रों के सहारे जो चले हैं वे निस्संदेह पहुँचे हैं। स्नेह हीन, तर्की और मन्दमति नरपशु इनको छोड़कर भटकते ही रहते हैं।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आनंद लहरी
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