श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
नाम
पढ़त गुनत गुन-गान सदा सत संगति पावै। अन्यत्र, वृन्दावन रसरीत में प्रविष्ट होने का मार्ग बतलाते हुए सेवक जी कहते हैं, ‘जो व्यक्ति प्रतिदिन क्षण-क्षण में श्री हरिवंश नाम रटता है, वह सदैव उस स्थान में संबंधित रहा आता है जहाँ नित्य प्रसन्न रहने वाले श्रेष्ठ दंपति श्याम-श्यामा रहते हैं। यह देखकर कि जहाँ हरि[3] हैं वहाँ हरिवंश हैं और जहाँ हरिवंश हैं वहाँ हरि हैं, मैंने श्री हरिवंश नाम को अपने समीप कर लिया है। हरिवंश नाम से हरि प्रसन्न होते हैं और हरि के प्रसन्न होने पर श्री हरिवंश के प्रति रति उत्पन्न होती है। हरि का और हित का, श्री हरिवंश का, इस प्रकार का ओत प्रोत संबंध ही वृन्दावन रस रीति की विशेषता है और इसी से उसकी वास्तविक गति[4] का सूचन होता है।’ श्रीहरि[5] अनेक रस रीतियों से संबंधित हैं और अनेक प्रकार से वे उपासित होते हैं। वृन्दावन रस रीति में उनका वह रूप आस्वादित होता है जो श्रीहित हरिवंश के साथ अभिन्न बन रहा है और जिसका ग्रहण केवल श्री हरिवंश नाम से होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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