हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 196

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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सिद्धान्त
नाम


हित प्रभु द्वारा दर्शित वृन्दावन रस रीति में एक मात्र हित का ही संपूर्ण वैभव देखकर, सेवक जी ने, राधावल्लभीय उपासकों के लिये हित-नाम, श्री हरिवंश-नाम, के जप का विधान किया है। उन्होंने कहा है, ‘श्री हरिवंश के गुण और नाम का जो स्मरण और मनन करता है उसको सदैव सत्संग मिलता रहता है, उसके चित्त में रस रीति बढ़ती रहती है और वह विमल वाणी से गुण-गान करता रहता है। सदैव आनंदित रखने वाली एवं परम हित साधन करने वाली प्रेम-लक्षणा-भक्ति उसके हृदय में उसका अत्यन्त भारी अनुराग हो जाता है। हितमय नवकुंज महल की टहल[1] में उसका दासी रूप से प्रवेश हो जाता है और वहाँ वह श्रीहरिवंश के चरणों की शरण में रहकर सदैव उनके समीप निवास करने लगता है।’

पढ़त गुनत गुन-गान सदा सत संगति पावै।
अरु बाढ़ै सर रीति विमल वाणी गुन गावै।।
प्रेम-लक्षणा-भक्ति सदा आनंद हितकारी।
श्री राधा युग-चरण प्रीति उपजै अति भारी।।
निज महल टहल नव कुँज में नित सेवक सेवा करणं।
निश दिन समीप रहै सु श्री हरिवंश चरणं शरणं।।[2]

अन्यत्र, वृन्दावन रसरीत में प्रविष्ट होने का मार्ग बतलाते हुए सेवक जी कहते हैं, ‘जो व्यक्ति प्रतिदिन क्षण-क्षण में श्री हरिवंश नाम रटता है, वह सदैव उस स्थान में संबंधित रहा आता है जहाँ नित्य प्रसन्न रहने वाले श्रेष्ठ दंपति श्याम-श्यामा रहते हैं। यह देखकर कि जहाँ हरि[3] हैं वहाँ हरिवंश हैं और जहाँ हरिवंश हैं वहाँ हरि हैं, मैंने श्री हरिवंश नाम को अपने समीप कर लिया है। हरिवंश नाम से हरि प्रसन्न होते हैं और हरि के प्रसन्न होने पर श्री हरिवंश के प्रति रति उत्पन्न होती है। हरि का और हित का, श्री हरिवंश का, इस प्रकार का ओत प्रोत संबंध ही वृन्दावन रस रीति की विशेषता है और इसी से उसकी वास्तविक गति[4] का सूचन होता है।’ श्रीहरि[5] अनेक रस रीतियों से संबंधित हैं और अनेक प्रकार से वे उपासित होते हैं। वृन्दावन रस रीति में उनका वह रूप आस्वादित होता है जो श्रीहित हरिवंश के साथ अभिन्न बन रहा है और जिसका ग्रहण केवल श्री हरिवंश नाम से होता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सेवा
  2. से. वा. 11-5
  3. श्याम-श्यामा
  4. चाल
  5. श्याम-श्यामा

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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