हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 19

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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श्री हरिवंश-चरित्र के उपादान


वृन्दावन भी इनके वर्चंस्व के नीचे था और इनके आतंक के कारण वहाँ बाहर के लोग निर्विघ्न वास नहीं कर पाते थे। श्री हित हरिवंश के वृन्दावन पहुँचने के बाद एक दिन नरवाहन जी वृन्दावन आये ओर हित जी का नाम सुन कर उनके दर्शनों के लिये गए। श्रीहित हरिवंश उस समय नवलदास बैरागी से चर्चा कर रहे थे। नर वाहन जी को श्रीहित जी का दर्शन करते ही वैराग्य उमड़ आया और वे अविलंब उनके शिष्य हो गये। उनके वैष्णव होते ही उनकी गति विधि बदल गई एवं वृन्दावन और वहाँ के निवासियों के प्रति उनके हृदय में इष्ट-बुद्धि उत्पन्न हो गई। अब वे वृन्दावन-निवासियों की रक्षा करने लगे और तभी से वृन्दावन के बसने का आरम्भ हो गया। नर वाहन जी की ख्याति उनकी अद्भुत गुरु भक्ति के लिये है। हित प्रभु ने प्रसन्न होकर अपने दो सुन्दर पद इनको अर्पण किये है और उन पदों में इन ही का नाम रख दिया है। यह दानों पद ‘हित चतुरासी’ में ग्रथित हैं।

शिष्यों के चरित्रों से श्री हित हरिवंश के धर्म प्रचार की अद्भुत विद्या का भी पता चलता है। वृन्दावन आने के बाद हित-प्रभु जीवन भर व्रज भूमि के बाहर नहीं गये। व्रज में भी केवल राधाकुण्ड में उनकी बैठक मिलती है। वृन्दावन में उनके पुण्य प्रभाव एवं परम-अनन्य रहन-सहन के कारण अनेक लोग अनायास उनकी ओर आकृष्ट हुए थे। धर्म का प्रत्यक्ष रूप धर्मी है। धर्मी में ही धर्म नेत्रों का विषय बनता है। श्री हित हरविंश ने अपने स्वरूप में प्रेमा भक्ति को मृर्तिमान किया था। प्रेमाभक्ति वाद-विवाद के द्वारा स्थापित नहीं की जा सकती, उसके प्रत्यक्ष-दर्शन के द्वारा हृदय में उसका संचार होता है। हित प्रभु के सांनिध्य में जो भी व्यक्ति आता था, उसके हृदय में प्रेम की धारा फूट पड़ती थी और उसके सम्पूर्ण संशयों का छेदन हो जाता था। छबीलदास के चरित्र से मालूम होता है कि देववन के एक तमोली थे। उनका श्री हित जी के साथ बालकपन से ही प्रेम था और वे उनके ठाकुर जी के लिए नित्य-प्रति पान पहुँचाया करते थे। हित प्रभु के वृन्दावन जाने के बाद छबीलदास का मन देववन में नहीं लगा और वे उनसे मिलने के लिये वृन्दावन गए। हित जी ने उनका बहुत आदर-सत्कार किया और अपने एक भृत्य के साथ उनको वन देखने को भेज दिया। वन में पहुँचते ही छबीलदास जी को प्रेम, सौन्दर्य और आनन्द की परावधि रास के दर्शन हो गये और वे मूर्च्छित हो कर वहीं गिर पड़े। उनको किसी प्रकार हित प्रभु के पास लाया गया। हित प्रभु ने उनसे पूछा- ‘संसार में अभी और कुछ दिन रहोगे,’ या निकुञ्ज में पहुँच कर नित्स-केलि का सुखानुभव करोगे’?

‘पूँछी आप प्रगट कछु रहि हौ। किधौं निकुञ्ज केलि सुख लहिहौ।।’
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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