हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 183

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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सिद्धान्त
प्रकट-सेवा


इस सम्प्रदाय की सेवा में किसी अवसर पर भी वैदिक, तांत्रिक और पौराणिक मंत्रों का प्रयोग नहीं होता और शुद्ध तत्सुख मयी प्रीति के आधार पर ही सेवा के सम्पूर्ण कार्यों का निर्वाह होता है। श्री ब्रजलाल गोस्वामी कहते हैं ‘वेदों में, तंत्रों में और पुराणों में अनेक प्रकार की श्री कृष्ण-सेवा बतलाई गई है। वह सब मंत्रात्मिका है, विभिन्न मंत्रों से निष्पन्न होने वाली है। हमारे यहाँ तो श्रीगुरु की कृपा से अपने भाव एवं अपनी कुल-परिपाटी के अनुकूल प्रेमपूर्ण सेवा ही प्रकाशित हो रहीं है।’

वेदैस्तंत्रैः पुराणैजँगति बहु विधा कृष्ण सेवा प्रदिष्टाः
नाना मंत्रात्मिकासा तदधिकृत जनेसर्वदास्तांप्रकामं।
अस्माकं तु स्वभाव स्वकुल समुचिता प्रेमपूर्णा पुरोक्ता
श्री राधाकृष्ण सेवा समुदयतु हृदि श्रीगुरोः सत्कृपातः।[1]

इसके साथ यह व्यवस्था भी दी हुई है, ‘अपने सेव्य स्वरूप के सामने न तो आँख बन्द करके ध्यान करना चाहिये और न प्राणायाम, अंगन्यास, करन्यास आदि कर्म ही करने चाहिये, क्योंकि प्रभु के समक्ष ध्यानादिक करने से उनमें सेव्य भाव तत्काल ही शिथिल हो जाता है और उनके प्रति ब्रह्म बुद्धि भी नष्ट हो जाती है। शुद्ध प्रेम का प्रकाश केवल श्रीकृष्ण की परिचर्या से ही होता है, अन्य किसी साधन से नहीं।'

न ध्यायेन्नेत्र युग्मं प्रभुवर पुरतः सन्निमील्य स्वकीयं,
प्राणाद्यामांग हस्तन्यसन जपमुखं कर्म नैवाचरेत।
ध्यानादेः सेव्य भावः सपदि विरम़ति ब्रह्मबुद्धिश्च नश्ये-
च्छुद्ध प्रेम्णाप्रकाशं रचियति सततं कृष्ण सेवैव नान्या।।[2]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. से. वि. 63
  2. से. वि. 49

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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