श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
श्री हरिवंश-चरित्र के उपादान
उत्तमदास जी का ‘श्री हरिवंश चरित्र’ यहीं समाप्त हो जाता है। इसके बाद उन्होंने भगवत मुदित जी के ‘रसिक अनन्य माल’ में दिये हुए श्री हरिवंश के शिष्यों के जीवन-वृत्तों में से कुछ घटनाओं को उठाकर श्री हरिवंश के चरित्र के साथ जोड़ दिया है। श्री हरिवंश के प्रेम-मय जीवन की वास्तविक झांकी उनके शिष्यों के चरित्रों में होती है। भगवत मुदित जी ने पहिला चरित्र नर वाहन जी का लिखा है। इस चरित्र से मालूम होता है कि वृन्दावन को बसने योग्य बनाने वाले श्री हरिवंश थे। वे गृहस्थ- वेष एवं एक भगवत-विग्रह लेकर वृन्दावन आये थे। उनके पूर्व कई बंगाली महात्मा वृन्दावन आ चुके थे। वे लोग सर्वथा अकिंञ्चन थे और तब तक उनमें से किसी को भगवत विग्रह की प्राप्ति नहीं हुई थी। उनमें से अनेक व्रज के विभिन्न लीला-स्थलों में भ्रमण करते रहते थे। श्रीरूप गोस्वामी के प्रसिद्ध ‘विदग्ध -माधव नाटक’ एवं ‘भक्ति-रसामृत-सिन्धु’ की रचना गोकुल में हुई है एवं ‘ललित-माधव-नाटक’ भद्रवन में रचा गया है। किन्तु श्री हितजी को सेवा में उपयोगी सम्पूर्ण वस्तुओं सहित वृन्दावन में वास करना था। दिल्ली में मुगलों की सल्तनत अच्छी तरह जम नहीं पाई थी और केन्द्रीय शक्ति की दुर्बलता के कारण अनेक शक्ति केन्द्र स्थान-स्थान पर उत्पन्न होकर प्रजा का उत्पीड़न कर रहे थे। नर वाहन जी भी इसी प्रकार के शक्ति-केन्द्र थे। वे डाकुओं के सरदार थे और उन्होंने सम्पूर्ण व्रज देश को अपने वश में कर लिया था। भगवत मुदित जी ने इनका परिचय देते हुये लिख है:- नर वाहन मै गाँव निवासी। वार-पार में एक मवासी ।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ रसिक-अनन्य-माल
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