हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 161

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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सिद्धान्त
श्री हित हरिवंश


श्री व्याससुवन कौतुक वसंत--गौरंग भजन मूरति लसंत।
उर अमल थाँवरौ रहित बाग- जल अमी जुगल पूरित सुहाग।।
सिंगार क्रलपतरु खिल्यौ बाग-तिहिंमोद द्रयौ बानीं पराग।
आनन नित नूतन बढ़त ओप-अंबुज उपमा हूँ करी लोप।।
दशधा बेलीवर रही छाइ-फल फूल भरे उर अमित भाइ।
रस वचन रचन मंजरी नूत-मंगल घट लसत सुमति अभूत।।
अनुराग बसन ढ़ाँपनि अनूप-दरसायौ रसिक बसंत रूप।
अभिलाष विविध सौरभ सुरंग-भींजत तन मन रहैं नित अभंग।।
इहि विधि संतत हरिवंश चंद-वृन्दावन हित गावै सुछंद।।

पूर्वोक्त चार रूपों में व्यक्त रहने वाले श्री हरिवंश को सेवक जी ने परात्पर तत्त्व माना है और उनसे अतिरिक्त अन्य सत्ता का स्वीकार नहीं किया। अपनी वाणी के पंचम प्रकरण में वे कहते हैं, ‘श्री हरिवंश ही सुन्दर ध्यान हैं और वहीं विशद विज्ञान हैं। श्री हरिवंश नाम और गुण रूप हैं, उनका नाम और उनके गुण उनके स्वरूप से अभिन्न हैं। श्री हरिवंश ही प्रेम रस रूप हैं। वहीं परम परमाक्षर हैं और वहीं कृपा के आगार हैं। श्री हरिवंश ही आत्मा एवं प्रगट परमानंद हैं और वही मन के लिये परम प्रमाण हैं। वही जीवन हैं और वही विपुल सुख-संपत्ति हैं। श्री हरिवंश गोत्र, कुल, देव एवं जाति हैं और वही हित का स्वरूप एवं ऋद्धि-सिद्धि हैं। श्री हरिवंश वेद की प्रसिद्ध कर्म-कांडात्मक विधि हैं और वही उपनिषद्-प्रतिपाद्य अद्वय ब्रह्म-तत्त्व हैं। श्री हरिवंश पातंजल योग शास्त्र प्रतिपादित अष्टांग योग हैं और वहीं पुराण प्रतिपादित पुण्यों का भोग हैं। श्री हरिवंश ही न्याय-वैषशिक द्वारा प्रतिपादित प्रमाण-परंपरा हैं और वही रस-शास्त्र द्वारा पल्लवित प्रियता हैं। श्री हरिवंश ही इतिहास, साहित्य शास्त्र, संगीत शास्त्र एवं चौसठ कलाओं के द्वारा गोचर पदार्थ हैं और वही जगन्मंगल स्वरूप हैं।’[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. से. वा. 5-2-4

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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