हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 157

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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सिद्धान्त
श्री हित हरिवंश


श्री हरिवंश सुनाद, सुरीति, सुगान मिले बन- माधुरी गाई।
श्री हरिवंश बचन्न, रचन्न सुनित्य किशोर किशोरी लड़ाई।।[1]

द्वापरांत के वेणु-नाद में और श्री हरिवंश की वाणी में मौलिक समानता होते हुए भी भाव की अभिव्यक्ति भिन्न प्रकार से हुई है। श्री हरि के वेणु-नाद से मोहित होकर जो ब्रज गोपिकाएँ उनके पास गई; उन्होंने केवल श्यामसुन्दर के दर्शन पाये और स्वभावतः उनके हृदय में कान्ताभाव उत्पन्न हो गया और सबने भगवान को अपना ‘परम कांत’ समझा। श्री हरिवंश के नाद से मोहित होकर जो जीव परम प्रेम की ओर आकृष्ट हुए उन्होंने प्रेम का सहज युगल स्वरूप देखा। सहज दाम्पत्य में आबद्ध श्याम श्यामा के दर्शन करके उनकी समस्त कामनायें इन दोनों को सुखी करने की एक प्रबल कामना में लीन हो गई और उनके हृदय में सहज रूप से सखी भाव का उदय हो गया।

दोनों वेणुनादों के द्वारा रास की रचना भी दो प्रकार से हुई है। द्वापरान्त के वेणुनाद ने जिस रास मंडल की रचना की थी, उसमें प्रत्येक गोपी के साथ एक नंदनंदन रास क्रीडा में प्रवृत्त थे। श्री हरिवंश की वाणी में जिस रास के दर्शन होते हैं, उसमें गोपीजन और नंदनंदन के द्वारा निर्मित यह रास मंडल उस मंडल की सुन्दर पृष्ठ भूमि बना हुआ है जिसमें प्रेम के अद्वय युगल स्वरूप राधा श्यामसुन्दर स्थित हैं। रास रस का गान करते हुए हितप्रभु ने कहा है, ‘श्याम के साथ राधिका रास मंडल में शोभायमान हैं। मंडल के बीच में नंदलाल और व्रजवाल[2] इस प्रकार स्थित हैं जैसे धन और तड़ित के बीच में कनक और मर्कत मणि हों।

श्याम संग राधिका रासमंडल बनी।
बीच नंदलाल ब्रज बाल चंपक बरन
ज्यौंव घन-तड़ित बिच कनक मर कतमनी।[3]

यहाँ पर घन और तडित नंदनदन और गोपीजन हैं और कनक-मर्कतमणि राधाश्यमसुन्दर हैं। दोनों मंडलों में रसकेलि हो रही है किन्तु उस की रचना भिन्न प्रकारों में हुई है। एक में कान्ताभाव का अनुगमन करने पर प्रवेश होता है और दूसरे में सखी भाव का आश्रय लेने पर। श्रीहिताचार्य ने केन्द्रस्थ रास मंडल के रास-रस का वर्णन अपनी वाणी में किया है। उन्होंने श्रीमद्भागवत-वर्णित रास का गान भी कतिपय पदों में किया है किन्तु उसको अपनी विशिष्ट रस दृष्टि से देखा है। उनके लिये यह रास सुन्दर मधुकर-केलि है जिसमें एक श्यामसुन्दर अनेक गोपीजनों के प्रेमरस का आस्वाद मधुकर-वृत्ति से करते हैं। हित चतुरासी के एक सुन्दर पद में मदनमोहन के अद्भुत रूप-माधुर्य का वर्णन करके वे वंशीनाद के द्वारा आकृष्ट व्रज सुन्दरियों का आगमन वर्णन करते हैं। इसके बाद श्यामसुन्दर के अन्तर्धान और गोपीजनों के विरह-विलाप का उल्लेख न करके वे सीधा रास का वर्णन कर देते हैं। पद के अंतिम छन्द में इस मधुकर केलि के दर्शन से खग-मृग-बेलि और सुर-सुन्दरियों का प्रेम-विवश होना दिखलाया है।[4]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. से. वा. 8-9
  2. श्री राधा
  3. हि. च. 71
  4. हि. च. 63

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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