श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
श्री हित हरिवंश
जै जै श्री हरिवंश लाल लालच बढ़यौ। ‘अपनी उत्कट प्रेमाभिलाषा के प्रगट रूप प्रियतम और उस अभिलाषा की अतृप्त-पूर्ति रूप प्रिया को सहज रसमयी नित्य प्रेम-क्रीड़ा में निमग्न देखकर श्री हरिवंश अपना अंचल पसार कर उनकी प्रशंसा करते हैं। श्री हरिवंश की इस सुख-राशि का कथन-श्रवण जो कोई करता है, उसकी प्रेमाभिलाषा पूर्ण होती है और उसको श्री वृन्दावन का अनंत प्रेम-वैभव यथामति सूझने लगता है।’ श्री हरिवंश प्रसंस करत अंचल लिये। सखी रूप में श्रीहित हरिवंश नित्य प्रेम-विहार के एक अंग हैं। ललिता, विशाखा आदि प्रधान आठ सखियों में हित रूपा सखी को, इस संप्रदाय में सब से अधिक अंतरंगा माना जाता। इसका कारण यह बतलाया गया है कि ‘हितसखी के रूप में युगल की प्रधान अष्ट सखियों के मन का हित मिलकर एक बना है और यह देखकर ललितादिक सखियाँ प्रसन्नता से खिल रही हैं।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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