हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 15

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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श्री हरिवंश-चरित्र के उपादान


कन्याओं के साथ श्रीहित जी को राधावल्लभ जी के विग्रह की प्राप्ति दोनों महात्माओं ने लिखी है। उत्तमदास जी ने, जैसा हम देख चुके है, श्रीहित हरिवंश के निकुंज गमन का वर्णन नहीं किया हैं। जय कृष्ण जी ने उनके निकुंज गमन का प्रकार एवं समय दिया है।

उपरोक्त तुलना से यह स्पष्ट हो जाता है कि जयकृष्ण जी ने अपने इस छोटे से चरित्र में श्री हित हरिवंश के जीवन से सम्बन्धित उन बातों पर प्रकाश डाला है जो उत्तमदास जी द्वारा लिखित चरित्र में या तो सर्वथा अनुल्लिखित है और या उतनी स्पष्ट नहीं हो सकी हैं। श्री हित जी के वंशधरों का परिचय तो प्रथम बार जयकृष्ण जी ने ही लिख है। इन दोनों दृष्टियों से जयकृष्ण जी की ‘हित कुल शाखा’ का स्थान, इस सम्प्रदाय के चरित्र-साहित्य में महत्त्वपूर्ण है।

चरित्र- महात्मा उत्तमदास जी कृत श्री हरिवंश चरित्र सब से अधिक प्रचानी सिद्ध होता है और वही सब से अधिक पूर्ण है। इस चरित्र में री हित हरिवंश के पिता व्यास मिश्र जी को किसी तत्कालीन शासक के आश्रित ज्योतिषी बतलाया गया है। इस शासक को ‘पृथ्वीपति’, ‘नृप’, ‘नरिंद’ और ‘पातसाह’ कहा गया है। श्री हित हरिवंश के जन्म के समय सिकन्दर लोदी दिल्ली का सुलतना था। वह निपुण शासक होने के साथ कट्टर मुसलमान था। उसने मथुरा को लूट कर नष्ट-भ्रष्ट किया था और वहाँ के नाइयों को हिन्दुओं की दाढ़ी-मूँछ न बनाने की आज्ञा निकाली थी। ऐसे धर्मान्ध शासक का एक हिन्दू को अपना ज्योतिषी बनाना और उसको चार-हजारी मनसब प्रदान करना आश्चर्य जनक व्यापार है।

इसके साथ ही एक बात ऐसी है जिससे इस ‘पातसाह’ के सिकन्दर लोदी होने का अनुमान होता है। श्री हित हरिवंश का जन्म दिल्ली-आगरा सड़क पर बसे हुये ‘बाद’ नामक ग्राम में हुआ था। उत्तमदास जी से बहुत पूर्व सेवक जी ने इसी ग्राम को श्री हित जी की जन्म भूमि बतलाया है:-

मथुरा मंडल भूमि आपनी, जहाँ बाद प्रगटे जग धनी।। भनी अवनिवर आपु मुख।[1]

उत्तमदास जी ने लिखा है कि बादशाह सदैव व्यास जी को अपने साथ रखता था और हित जी के जन्म के समय व्यास जी बादशाह के साथ बाद ग्राम में पड़ाव डाले हुए थे। इतिहास के अनुसार सिकन्दर लोदी ने ही आगरा बसाया था और वह वहाँ अक्सर जाया करता था। आगरा सन 1504 (सं. 1561) में बसाया गया था और इसके पूर्व सं. 1559 में सुल्तान का वहाँ आना-जाना प्रारम्भ हो चुका था, क्योंकि दक्षिण एवम पूर्व के इलाकों के शासन के लिये यह स्थान उसको बहुत उपयुक्त प्रतीत हुआ था। सिकन्दर लोदी के शासन-काल का पूरा इतिहास लेखक को प्राप्त नहीं है अत: वह इस सम्बन्ध में, कोई निश्चित मन्तव्य देने की स्थिति में नहीं है।

उपरोक्त घटना को छोड़ कर श्री हित हरिवंश के चरित्र का सम्बन्ध अन्य किसी बाहरी ऐतिहासिक घटना के साथ नहीं है, अत: यहाँ उत्तमदास जी -कृत चरित्र का ही सारांश दिया जाता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. से. वा. 1-6

संबंधित लेख

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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