हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 14

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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श्री हरिवंश-चरित्र के उपादान


3. जय कृष्ण जी कृत ‘हितकुल शाखा’। इस छोटे से ग्रन्थ की रचना सं. 1760 में हुई है।

संवत् सत्रहसै चालीस, बरस अधिक हैं सब सुख बीस। कातिक सुदि तेरस कुल साखा, मथुरा मधि पूरन भइ भाखा।।

उत्तमदास जी कृत श्री हरिवंश चरित्र काफी संक्षिप्त है, किन्तु इस ग्रन्थ में उससे भी अधिक संक्षेप किया गया है। जयकृष्ण जी का उद्देश्य श्री हित जी के कुल की विभिन्न शाखाओं का परिचय देने का है और इसीलिये उन्होंने स्वयं श्री हित हरिवंश के चरित्र का विस्तार ग्रन्थ में नहीं किया है। यह चरित्र संक्षिप्त होते हुए भी पूर्ण एवं सुगठित है एवं इसमें सभी प्रधान घटनाओं के संवत दिये हुए हैं। उत्तमदास जी ने जन्म का संवत 1559 एवं सेवा स्थापना का संवत 1591 दिया है और वही इसमें भी स्वीकृत है। जय कृष्ण जी ने श्री हित जी के वृन्दावन-वास की अवधि 18 वर्ष लिखी है और उनका निकुंज गमन सवंत 1609 में बतलाया है। उत्तमदास जी ने अपने ‘समय-वर्णन’ में यह दोनों स्वीकार किये हैं। उत्तमदास जी ने प्रारम्भ में देववन की कथा लिखि है जिसमें उन्होंने श्री हित हरविंश के पिता व्यास मिश्र जी को किसी ‘पृथ्वीपति’ का मनसबदार बतलाया है। जयकृष्ण जी ने श्री हित जी के जन्म से प्रारम्भ किया है और देववन का वृत्तान्त नहीं लिख है।

उत्तमदास जी ने देववन में तीन पुत्र एवं एक कन्या का जन्म होना लिख है, किन्तु उनके नाम नहीं लिखे है। जय कृष्ण जी ने तीनों पुत्रों के नाम एवं जन्म तिथि दी हैं और पुत्री का नाम ‘सहिब दे’ लिख है। उत्तमदास जी ने देववन में श्री हित हरिवंश को श्री राधा से मन्त्र प्राप्ति एवं व्यास मिश्र के बगीचे के कूप से द्विभुज ‘स्वरूप’ की प्राप्ति होना लिखा है। जय कृष्ण जी ने इस वृत्तान्त को छोड़ दिया है और देववन की संतति के परिचय के बाद श्री हित जी का श्रीराधा की आज्ञा से वृन्दावन गमन वर्णन कर दिया है:-

यह संतति श्री देवन भई। तब श्री श्यामा आज्ञा दई ।।

वृन्दावन कौं बेगि पधारौ। निज रस रीति अवनि विस्तारौ ।। श्रवन सुनत उठि चले धाम कौं। तोषन हित श्रीप्रिया-श्याम कौं ।।

बरस बतीस वय-क्रम जान्यौं। प्रगट वास बन कौ मन मान्यौ (हितकुल शाखा)।।

इसके बाद उत्तमदास जी ने चिड़थावल ग्राम में दो ब्राह्मण कन्याओं के साथ श्री हित जी के विवाह की कथा विस्तार-पूर्वक लिखी हैं। जय कृष्ण जी ने इस सम्बन्ध में केवल इतना लिखा है:-

श्री वृन्दावन के उत्साह, मारग मधि कीन्हे द्वै ब्याह।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हित कुल शाखा

संबंधित लेख

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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