हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 138

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

Prev.png
सिद्धान्त
राधा-चरण -प्राधान्‍य

वंशी अलिजी रचित ‘श्री राधिका महारास’ प्रकाशित हो चुका है। इसके अध्‍ययन के द्वारा हम यह दिखलाने की चेष्टा करेंगे कि हितप्रभु की उपासना की रीति को छोड़ने से श्रीराधा-प्राधान्‍य का क्‍या रूप बन जाता है।

‘राधिका-महारास’ में श्री भागवत वर्णित रासलीला का संपूर्ण अनुकरण है, केवल श्रीकृष्‍ण के स्‍थान में श्रीराधा को प्रतिष्ठित कर दिया गया है। श्रीमद्भागवत की रासलीला में श्रीराधा का नामोलेख नहीं है, इसमें श्रीकृष्‍ण अनुपस्थित हैं। इसमें श्रीराधा ही वेणु-वादन करती हैं और जब सखी-गण ‘गृह-तन-बन्‍धु बिसारि’ कर उनके निकट पहुँचती है तो श्रीराधा कहती हैं,

सहचरिधर्म नाहिं यह होई, सहचरि-धर्म सख्‍य रस जोई।
हँसि हैं ओर सखी जेती मो, कौन देश तै आई ये को?

इसके उत्तर में सखीगण कहती हैं,

अहो कुँवरि तुव रुप यह नाहिंन राखत धर्म।
तेरी सुधि विसरावई हमरे छेदत मर्म।।

इसके बाद रास का आरंभ होता है और श्रीकृष्‍ण की भाँति श्रीराधा एक सखी को लेकर रास के मध्‍य के अंतर्धान हो जाती हैं। सखीगण परम दुखित होकर विलाप करने लगती हैं और श्रीराधा की लीला का अनुकरण करती है। श्रीराधा प्रगट होकर उनके साथ रास क्रीडा का आरंभ करती हैं, रास में सब श्रमित हो जाती हैं और-

श्रम निर्वारन चलीं, कुंवरि‍ राधा यमुना तट।
प्रिया वृन्‍द लिये संग, माल मरगजि तैसे पट।।
वारि माँझ मिल खेलत श्री राधा सँग प्‍यारी।
छिरकत मुख छवि पैरनि हावभाव सुखकारी।।
छिरकि-छिरकि लपटात कुंवरि सौं सब व्रजनारी।
तब अकुलाइ लड़ैती तिन सौं करत हहारी।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः