हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 134

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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सिद्धान्त
श्रीराधा

इसलिये, ध्रुवदासजी ने श्रीराधा के रूप की सबसे बड़ी अद्भुतता यह बतलाई है कि इसको जो देख पाता है, वह भी रूपवान हो जाता है।

याकौ रूप जु देखै आई, सोऊ रुपवंत ह्वै जाई।

रूप की यह परात्‍पर सीमा, मृदुता, दयालुता और कृपालुता की भी राशि है। इनको कभी भूलकर भी क्रोध नहीं आता और इनके हृदय में तथा मुख पर सदैव हास छाया रहता है। प्‍यारे श्‍यामसुन्‍दर की यह सुकुमारी प्रिया जिनकी उपास्‍य हैं वे अनेक वार धन्‍य हैं। इस उपासना के सुख को छोड़कर अन्‍य संपूर्ण सुख दुख रूप हैं।’

सहज सुभाव परयौ नवल किशोरी जू कौ,
मृदुता, दयालुता, कृपालुता की रासि है।
नैकहूँ न रिस कहूँ भूले हू न होत सखि,
रहत प्रसन्न सदा हिये मुख हासि है।
ऐसी सुकुमारी प्‍यारे लाल जू की प्रान प्‍यारी,
धन्‍य, धन्‍य, धन्‍य तेई जिनके उपासि है।
हित ध्रुव ओर सुख जहाँ लगि देखियतु,
सुनियतु जहाँ लागि सबै दुख पासि है।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्री ध्रुवदास

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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