हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 133

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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सिद्धान्त
श्रीराधा

चक चौंधति लखि कुंवर कौं ससि जीतत जे वाम।
आवत ढ़िंग कीरति सुता तबही हरि दीसत स्‍याम।।

इतना ही नहीं, ‘नंद किशोर ने सब ब्रज वासियों के हृदयों को अपने श्‍याम रंग से रंग दिया था। श्रीराधा ने अपने गौर वर्ण से उन सबको गौर बना दिया, यह देखकर नंद-नंदन का सारा रूप-गर्व गल गया। जिस प्रकार सोने की परख कसोटी पर कसे जाने पर होती है, उसी प्रकार रूप की परख रूपवान के हृदय में उसकी लकीर खिंच जाने पर होती है।'

रचे करेजा साँबरे सब व्रज नंद किशोर।
हिये गौर राधा किये तब बिक गई सबै मरोर।।
कनक कसौटी पर कसत जब होत बरन कौ ठीक।
परख रूप की खिंचत है हो, रूपनि हीये लीक।।[1]

श्री राधा के गौर वर्ण का प्रभाव केवल ब्रजवासियों के हृदयों पर ही नहीं पड़ता, वे जिसे फुलवारी के पास एक क्षण के लिये खड़ी हो जाती हैं, वहाँ के पत्र और फूल पीत वर्ण के हो जाते हैं।

नैकु होत ठाड़ी कुंवरि जिहिं फुलवारी माँहि।
पत्र-फूल तहाँ के सबै पीत बरन ह्वै जाहिं।।[2]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्री सहचरि सुख
  2. प्रेमावली

संबंधित लेख

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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