श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
श्री हरिवंश-चरित्र के उपादान
दूसरी एक बात और भी है। उत्तमदास जी ने अपने ग्रन्थ में, प्रारंभ में, श्री हित-हरिवंश का चरित्र दिया है। इसमें देववन से लेकर वृन्दावन वास तक का पूरा वर्णन कर दिया है। इसमें उन्होंने श्री हित जी के जन्म का एवं सेवा स्थापन का संवत दिया है, किन्तु न तो उनके वृन्दावन-वास की अवधि बतलाई है और न निकुंज गमन का संवत दिया है। श्री हरिवंश के इस चरित्र के बाद उत्तमदास जी ने उनके प्रधान शिष्यों के चरित्र दिये हैं। मोहनदास जी के चरित्र के बाद ‘श्री जी कौ जन्मोत्सव समय वर्णन’ दिया हुआ मिलता है जिसमें श्री हित-हरिवंश के जनम का संवत, वृन्दावन आने के समय की उनक अवस्था, उनके वृन्दावन-वास की अवधि एवं उनके निकुंज गमन का संवत दिया हुआ है। इस ‘समयवर्णन’ को चरित्र के अन्यत्र लगा देख कर अनुमान होता है कि यह बाद में लगाया गया है। इस अनुमान की पुष्टि इस बात से होती है कि सं. 1760 में लिखे गये ‘हित कुल शाखा’ ग्रन्थ में उसके कर्ता महात्मा जयकृष्ण जी ने हित प्रभु के निकुंज गमन का उल्लेख करने के पूर्व रसिकों से अपने इस कार्य के लिए क्षमा-याचना की है। उन्होंने लिखा है कि ‘मैं प्रभु की आज्ञा से इस बात को लिख रहा हूँ, अत: इसमें मेरा अपराध नहीं समझना चाहिये’:- विनती सब रसिकनि सों करौं। तुम मत दूखहु हौं अति डरौं ।। इससे मालूम होता है कि जयकृष्ण जी से पहिले श्री हित हरिवंश के निकुंज-गमन का वर्णन किसी ने नहीं किया था और इस बात का लिखना सदाचार के विरुद्ध समझा जाता था। उत्तमदास जी ने भी इस घटना का उल्लेख अपने ‘चरित्र’ में नहीं किया था। जय कृष्णा जी के लिख देने के बाद उन्होंने अपने ग्रंथ में इसको ग्रहण कर लिया और जय कृष्ण जी के वर्णन का संक्षेप करके उनके कई छन्द ज्यों के त्यों उठा कर रख दिये। उपरोक्त दो कारणों से उत्तमदास जी के श्री हरिवंश चरित्र को जय कृष्ण जी के ग्रंथ से पूर्व एवं सर्वप्रथम चरित्र मानना पड़ता है। उत्तमदा जी गोस्वामी कुंजलाल जी के शिष्य थे। गो. कुंजलाल जी का जन्म सं. 1696 में हुआ था। अत: उत्तमदास जी कृत श्री हरिवंश चरित्र की रचना सं. 1740-45 के लगभग हुई होगी। श्री हरिवंश के निकुंज गमन के लगभग 125 वर्ष बाद लिखे जाने के कारण इसमें उनके जीवन की दैनंदिन घटनाओं का समावेश नहीं हो पाया है और दो-चार प्रधान घटनाओं का उल्लेख करके यह चरित्र समाप्त हो गया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हितकुल शाखा
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