हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 127

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

Prev.png
सिद्धान्त
श्रीराधा

सोलहवीं शती या उससे पूर्व के राधा कृष्‍णोपासकों में श्रीहित हरिवंश ही एक ऐसे महानुभाव हैं जिन्‍होंने शपथ पूर्वक श्री राधा को अपना ‘प्राणनाथ’ घोषित किया है और अपने इस निर्णय के लिये किसी की स्‍वीकृति की अपेक्षा नहीं रखी है।

रहौ कोऊ काहू मनहिं दिये।
मेरे प्राणनाथ श्रीश्‍यामा शपथ करौं तृण छिये।।

इन्‍होंने ही सर्वप्रथम, संस्‍कृत में, श्रीराधा से संब‍ंधित एक स्‍तोत्र-ग्रन्‍थ की रचना की ओर उसमें भी निर्भीकता पूर्वक अपनी राधा-निष्ठा को प्रकाशित किया। एक श्‍लोक में वे कहते हैं ‘करोड़ों नरकों के समान वीभत्‍स विषय-वार्ता तो दूर रही, श्रुति-कथा के श्रवण में भी व्‍यर्थ का श्रम ही है और कैल्‍य[1] से मुझे भय लगता है। शुकादिक भक्तगण यदि परेश श्रीकृष्‍ण के भजन में उन्‍म्त हो रहे हैं तो इससे भी मुझे मतलव नहीं। मैं तो यह चाहता हूँ कि श्री राधिका के चरण कमलों के रस में मेरा मन डूब जाय।

अलं विषय वार्तया नरक कोटि वीभत्‍सया,
वृथा श्रुति-कथा-श्रमो वत विभेमि कैवल्‍यत:।
परेश भजनोन्‍मदा यदि शुकादय: किंतत:,
परं तु मम राधिका पद रसे मनो मज्जतु।।[2]

श्रीहित हरिवंश बाल्‍यकाल से ही राधा-पक्षपाती थे और अल्‍पवय में ही उनको श्रीराधा से वह मंत्र मिल गया था जो राधावल्लभीय संप्रदाय की उपासना और रस–रीति का बीज है। हितप्रभु के द्वारा उनके शिष्‍यों के नाम लिखे गये दो पत्र प्राप्त हैं। द्वितीय पत्र में उन्‍होंने लिखा है, ‘जो शास्‍त्र मर्याद सत्‍य है और गुरु महिमा ऐसे ही सत्‍य है तो व्रज-नव-तरुणि-कदंब-चुड़ामणि श्रीराधे, तिहारे स्‍थापे गुरु मार्ग विषै अविश्‍वास अज्ञानी कौं होत है।’ इससे स्‍पष्ट प्रतीत होता है कि श्रीराधा हितप्रभु की गुरु थीं और उनके दिये हुए मंत्र के द्वारा ही इस संप्रदाय का प्रवर्तन हुआ था। श्रीहरिलाल व्‍यास ने राधा-सुधा-निधि की अपनी प्रसिद्ध ‘रस कुल्‍या’ टीका के मंगलाचरण में कहा है, ‘राधा ही जिनकी इष्ट है, राधा ही संप्रदाय प्रवर्तक आचार्य और मत्रदाता सद्गुरु हैं, राधा नाम ही जिनका सर्वस्‍व-मंत्र हैं, उन राधा-चरण-प्रधान[3] की मैं वंदना करता हूँ।’

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मोक्ष
  2. रा० सु० नि० 83
  3. श्रीहित हरिवंश

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः