श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
श्याम-सुन्दर
प्रिया के वस्त्राभूषणों के प्रति भी विहारीलाल का अमित आकर्षण है। उन वस्त्राभूषणों को धारण करने का चाव उनके चित्त में सदा बना रहता है। ‘उन पट-भूषणों को पहिनकर वे सहचरि का वेश बनाते हैं और अत्यन्त अनुराग पूर्वक हाथ में फूलों का पंखा लेकर प्रिया की सेवा में घूमते रहते हैं।' ते पट-भूषण पहरि पिय, सहचरि कौ वपु बानि। सखी वेश में उनका त्रिभुवन-विमोहन रूप और भी निखर आता है। स्वामी हरिदास जी उनकी इस विचित्रता पर आश्चर्य प्रकट करते हुए कहते हैं, ‘हे श्याम किशोर जू, तुम्हारे अंग पर तुम्हारा पीतांवर एवं श्रीराधा की चूनरी समान रूप से खिलते हैं। तुमको ऐसा रूप कहाँ से मिला है, इस उधेड़-बुन में मैं रात-दिन पड़ा रहता हूँ। श्याम किशोर जू तुमकौं दोऊ रंग रंगित पीतांवर-चूनरी। अपने वस्त्राभूषणों के द्वारा घनश्याम के रूप में अभिवृद्धि होती देखकर श्रीराधा स्वयं उनकी वेश-रचना को पूर्ण बना देती हैं। वे हँसकर लाड़ सहित श्याम सखी के भाल पर सौभाग्य चिह्न–बैंदी-लगाती हैं और अपनी बेसर उनको पहिना देती हैं। श्यामसुन्दर के मन में मोद बढ़ जाता है और उनके मुख पर नई रूप-छटा चढ़ जाती है। श्रीराधा और सखीगण उनकी ओर निर्निमेष दृष्टि से देखते रह जाते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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