हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 122

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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सिद्धान्त
श्‍याम-सुन्‍दर

हितप्रभू ने अपने श्रीराधा सुधा नि‍धि स्‍तोत्र को प्रेम की इस छटा के साथ ही आरंभ किया है। ग्रन्‍थ के प्रथम श्‍लोक में वे वृषभानु-नंदिनी की वंदना करते हुए कहते हैं ‘जिनि के नीलांचन के अनायास हिलने से उठे हुए धन्‍यातिघन्‍य पवन का स्‍पर्श पाकर, योगीन्‍द्रों के लिये अति दुर्गम गति मधु-सूदन अपने आपको कृत कृत्‍य मानते हैं मैं उन वृषभानु-नंदिनी की दिशा को भी प्रणाम करता हूँ।'

यस्‍या कदापि बसनांचल खेलनोत्‍थ-
धन्‍यातिघन्‍य पवनेन कृतार्थ मानी।
योगीन्‍द्र दुर्गम गतिमंधुँसूदनोऽपि-
तस्‍या नमोस्‍तु वृषभानु भुवो दिशेऽपि।।[1]

प्रेम पात्र से सम्‍बन्धित वस्‍तुओं के असाधारण महत्‍व को प्रदर्शित करने के लिये हितप्रभु ने ग्रन्‍थ के पहिले श्‍लोक में वृषभानु नंदिनी की दिशा को नमस्‍कार करके दूसरे श्‍लोक में उनकी सर्वातिशायी महिमा को एवं तीसरे और चौथे श्‍लोक में उनकी रस-काम-धेनु–स्‍वरूपा चरण-रेणु को प्रणाम किया है। पाँचवे श्‍लोक में स्‍वयं श्रीनिकुंज देवी की वन्‍दना की है। प्रिय से सम्‍बन्धित वस्‍तुओं के साथ जब श्‍यामसुन्‍दर के प्राणों की इतना गहन सम्‍बन्‍ध है तो जिन दासियों के ऊपर प्रिया की करुणा और ममता है, उनके तो यह रसिक शेखरदास हैं श्री ध्रुवदास जी कहते हैं ‘प्रियतम की प्रीति की रीति को सुनकर हृदय में उल्‍लास होता है। प्रियतम की जितनी दासी हैं उनके वे दास बने हुये हैं।

पिय की प्रीति की बात सुनि हिय में होत हुलास।
दासी जहँ लगि प्रिया की ह्वै रहे तिनके दास।।[2]

प्रेम मार्ग दासता एंव पराधीनता का मार्ग है किन्‍तु यह वह दासता है जिसकी वन्‍दना ईशता करती है। नंदनंदन ने इस घर में दासों का दास बन कर इस पदवी को अकल्‍पनीय उच्‍चता प्रदान कर दी है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रा० सु० 1
  2. मन श्रृंगार

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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