श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
श्याम-सुन्दर
'द्वादश-यश’-कार स्वामी चतुर्भुजदासजी ने अपने ‘श्रीराधा प्रताप यश’ में श्यामसुन्दर के द्वारा श्री राधा के प्रति श्रवणादिकों का प्रेममय आचरण बड़े सुन्दर ढंग से दिखलाया है। प्रथम तीन के संबंध में वे कहते हैं, श्रवणानि सुजस सखिनु पहँ सुनत, राधा नाम रैन-दिन भनत। श्रीराधा के अत्यन्त सुन्दर और सुकुमार चरणों पर रीझ कर श्यामसुन्दर उनमें जो जावक के द्वारा चित्र-रचना करते हैं वही ‘पाद-सेवन’ बन जाता है और प्रिया का नख-शिख श्रृंगार करते हैं वही उनका ‘अर्चन’ होता है। जावक रचि चरननि जु बनाई, नूपुर माल रुचिर पहिनाई। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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