हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 118

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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सिद्धान्त
श्‍याम-सुन्‍दर

‘हित चतुरासी’ में श्‍यामसुन्‍दर ने अपनी देह को श्रीराधा-पद-पंकज का सहज मंदिर बतलाया है, तब पद-पंकज को निजु मंदिर पालय सखि मम देह' ।[1]

भक्ति का अर्थ ‘सेवा’ है। भक्ति के उदय के साथ सेवा का चाव बढ़ता है। सेव्‍य की रुचि लेकर उसकी सेवा करना, सेवा का आदर्श माना जाता है। अपनी अपार सेवा-रुचि को श्रीराधा के आगे प्रगट करते हुए श्‍याम-सुन्‍दर कहते हैं, हे प्रिया, तुम जहाँ चरण रखती हो वहाँ मेरा मन छाया करता फि‍रता है। मेरी अनेक मुर्तिया तुम्‍हारे ऊपर चँवर ढुराती हैं, कोई तुमको पान अर्पण करती हैं, कोई दर्पण दिखाती है। इसके अतिरिक्त और भी अनेक प्रकार की सेवायें, जैसा भी मुझे कोई बतला देता है, मैं तुम्‍हारी रुचि लेकर करता रहता हूँ। इस प्रकार, हर एक उपाय से मैं तुम्‍हारी प्रसन्नता प्राप्त करने की चेष्टा करता हूँ।'

जहाँ-जहाँ चरण परत प्‍यारीजू तेरे। तहाँ-तहाँ मेरौ मन करत फिरत परछाँही। बहुत मूरित मेरी चँवर ढुरावत कोऊ बीरी खबावत, एक आरसी लै जाहीं। और सेवा बहुत भाँतिन की जैसी ये कहैं कोऊ तैसी ये करौं ज्‍यौं रुचि जानौं जाही। श्री हरिदास के स्‍वामी श्‍यामा कौ भलौ मनावत दाइ उपाई।[2]

श्रीराधा-नाम का माहात्‍म्‍य ख्‍यापन करते हुए हिताचार्य ने कहा है ‘जिसका स्‍वयं श्रीहरि प्रेम पूर्वक श्रवण करते हैं, जाप करते हैं, सखीजनों में सहर्ष गान करते हैं त‍था प्रेमाश्रु-पूर्ण मुख से उच्‍चारण करते हैं, वह अमृत-रूप-राधा-नाम मेरा जीवन है।’

प्रेम्‍णाऽऽकर्णयते,जपत्‍यथ,मुदा गायत्‍यथाऽलिष्वयं।
जल्‍पत्‍यश्‍श्रु मुखो हरिस्‍तदमृतं राधेति मे जीवनम्।।[3]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पद- 66
  2. स्‍वामी हरिदास- केलिमाल- 53
  3. रा० सु० नि० 96

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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