श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
युगल-केलि (प्रेम-विहार)
सब रसिक एकमेक करि सानै अनुभव करि उर हीने। हितप्रभु ने, एक पद में, इस अनोखी श्रृंगार रस रूपी नदी को जगत-पावनी कहा है, ‘सौरत रस-रूपी नदी जगत्-पावनी’। दूसरे पद में उन्होंने नव निकुंज की श्रृंगार-केलि को जगत् के द्वारा वंदना करने योग्य बतलाया है- नव निकुंज, श्याम-केलि जगत वंदिनी। श्री हरिराम व्यास ने अपने भाग्य की सराहना करते हुए राधा-हरि के इस परम पावन अनुराग की वंदना की है। बन्दौं राधा-हरि कौ अनुराग। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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