श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
युगल-केलि (प्रेम-विहार)
इसी भाँति, प्रिया जब अपने अनियारे नेत्रों में अंजन-रेख बनाकर उनके अद्भुत सौन्दर्य को दर्पण में देखती हैं तब इनके द्वारा बिंधने वाले अपने प्रियतम के चित्त की मृदुलता की ध्यान उनको आ जाता है और वे सोच में डूब जाती हैं। मुकर पानि लिये लाड़िली बैठी सहज सुभाइ। युगल-विहार में सखियों का बहुत बड़ा हाथ है। वे युगल की रुचि लेकर रुचि-पूर्वक उनकी सेवा में प्रवृत्त रहती हें। वृन्दावन में छहों ॠतुएँ अपने समय पर आती रहती हैं। सखी गण इन सब सुन्दरतम उपभोग युगल को कराती हैं। यह उपभोग ही इन विभिन्न ॠतुओं की विभिन्न केलियों के रूप में सखीजनों के सुख की वृद्धि करता है। इनमें पावस-विहार, शरद-विहार और वसंत-विहार प्रधान हैं। सखियों की अष्ट याम-सेवा में यह छहों ॠतुएँ आठयाम[2] में ही उपभुक्त हो जाती हैं और इस प्रकार, नित्य-विहार के सब अंगों का नित्य निर्वाह होता रहता है। राधा मोहन नित्य उन्नत नव किशोर हैं, और नित्य नव-दंपति हैं। उनका अद्भुत प्रेम-सौन्दर्य प्रतिक्षण नूतन बनता रहता है। दूलह-दुलहिन ही नूतन प्रेम-रूप का उपभोग करते हैं। राधा-श्याम सुन्दर नित्य नव-वर-वधू हैं। हित प्रभू ने नूतन प्रेम- रस के आस्वाद के लिये इनकी इसी रूप में उपासना की है और अपने कई पदों में दुलह-दुलहिन के रास-विलास का वर्णन किया है। सखियों को सब दिनों में विवाह का दिन ही प्रिय है, अत: वे युगल के करों में प्रतिदिन कंकण बाँधे रखती हैं। वे युगल को विवाह का खेल खिलाती हैं, खेल का मंगल गाती हैं और उस खेल में उत्पन्न होने वाली रस-संपत्ति का चयन करती हैं। परस्पर छवि में छके हुए युगल नित्य सुहाग-रजनी का उपभोग करते रहते हैं। दुलह-दुलहिन हाथ डोरना बाँध्यौ राखत सजनी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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