हरि सँग खेलन फागु चली।
चोवा चंदन अगरु अरगजा, छिरकतिं नगर चली।।
राती पीरी अँगिया पहिरे, नव तन झूमक सारी।
मुख तमोर, नैननि भरि काजर, देहि भावती गारी।।
रितु बसंत आगम रतिनायक, जोबन-भार-भरी।
देखन रूप मदनमोहन कौ, नंददुवार खरी।।
कहि न जाइ गोकुल कौ महिमा, घर घर बीथिनि माही।
'सूरदास' सो क्यौ करि बरनै, जो सुख तिहुँ पुर नाही।।2873।।