हरि यह सुनत गए ता वन मैं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग
जाबवंती और सत्यभामा का विवाह



हरि यह सुनत गए ता वन मैं, सो प्रसेन मृत देख्यौ ।
सिंह खोज बहुरौ तहँ पायौ, सिंह बहुरि मृत पेख्यौ ।।
बहुरौ जामवंत पग देख्यौ, तहाँ जाइ जदुराई ।
द्वादस दिवस अवधि आवन कहि, बिल में पैठे धाई ।।
जामवंत दिन बीस चारि लौं, जुद्ध, कियौ तब जान्यौ ।
हाथ जोरि करि अस्तुति कीन्ही, मैं तुमकौ न पिछान्यौ ।।
बिहँसि कह्यौ जादवपति तासौ, मनि कारन मैं आयौ ।
जाबवती समेत मनि दै पुनि अपनौ दोष छमायौ ।।
सँग के लोग अवधि के बीते, कह्यौ नगर मैं जाइ ।
मातु पिता व्याकुल ह्वै धाए, मग मैं बैठे आइ ।।
मनि सत्नाजित कौं प्रभु दीन्ही, रह्यौ सु सीस नवाइ ।
सतभामा समेत लै आयौ, मनि कौ हरि सिर नाइ ।।
और बहुत दायज दीन्हे उन, करि विवाह व्यौहार ।
भयौ परम आनंद दुहूँ दिसि, मंगलचार अपार ।।
मनि ताकी ताकौ फिरि दीन्ही, सुजस जगत मैं छायौ ।
श्रीगुरु चरन प्रताप चरित यह, ‘सूरदास’ जन गायौ ।। 4190 ।।

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