हरि बिन कूण गती मेरी -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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स्‍तुति प्रार्थना


हरि बिन कूण गती मेरी ।। टेक ।।
तुम मेरे प्रतिपाल कहिये, मैं रावरी चेरी ।
आदि अंत निज नाँव तेरो, हीया में फेरी ।
बेरि बेरि पुकारि कहूँ, प्रभु आरति है तेरी ।
यौ संसार विकार सागर, बीच में घेरी ।
नाव फाटी प्रभु पाल बाँधो, बूड़त है बेरी ।
विरहणि पिवकी बाट जोवै, राखिल्‍यौ नेरी ।
दासि मीराँ राम रटत है, मैं सरण हूँ तेरी ।।65।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कूण = कौन सी। गति = गती, दशा ( देखो - भई गति साँप छछूँदर केरो - तुलसीदास )। कहिये = कहना चाहिए, हो। निज = अपना। हीया में फेरी = हृदय में स्मरण करती रहती हूँ। आरति = आर्त्ति वा उत्कट चाह। तेरी = तेरे लिये। यौ = यह। पाल बाँधो = पाल चढ़ाओ, पाल तानो। बेरी = बेड़ा नाव ( डिं.)। नेरी = निकट।

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