हरि बिनु पलक न लागति मेरी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग घनाश्री


 
हरि बिनु पलक न लागति मेरी।
पात पात बृंदावन ढूँढ़यौ, कुंज गली सब हेरी।।
हम दुखिया दुख ही कौं सिरजी, जनम जनम की चेरी।
'सूरदास' प्रभु तुम्हरे दरस कौ, भई भसम की ढेरी।।3568।।

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