हरि बिनु कौन सौ कहियै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


हरि बिनु कौन सौ कहियै।
मनसिज विथा अरनि लौ जारति, उर अंतर दहियै।।
कानन भवन रैनि अरु बाहर, कहूँ न सचु रहियै।
मूक जु भए जज्ञ के पसु लौ, कोलौ दुख सहियै।।
कबहुँक उपजै जिय मैं ऐसी, जाइ जमुन बहियै।
'सूरदास' प्रभु कमलनैन बिनु, कैसै ब्रज रहियै।। 3390।।

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