हरि बिनु को पुरवै मो स्‍वारथ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग धनाश्री




हरि बिनु को पुरवै मो स्‍वारथ ?
मीड़त हाथ, सीस धुनि ढोरत, रुदन करत नृप, पारथ।
थाके हस्‍त, चरन-गति थाकी, अरु थाक्‍यौ पुरुषारथ।
पाँच बान मोहि संकर दीन्‍हे, तेऊ गए अकारथ।
जाकैं संग सेतबँध कीन्‍हौं, अरु जोत्‍यौं महभारथ।
गोपी हरी सूर के प्रभु बिनु, रहत प्रान किहिं स्‍वारथ।।287।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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