हरि बिछुरन निसि नींद गई री ।
वन पिक, बरह, सिलीमुख मधुव्रत, बचननि हौ अकुलाइ लई री ।।
वह जु हुती प्रतिमा समीप की, सुख सपत्ति दुरित चितई री ।
तातै सदा रहति सुनि सजनी, सेज सजल दृग नीर मई री ।।
अवधि अधार जु प्रान रहत है, इनि सबहिनि मिलि कठिन ठई री ।
'सूरदास' प्रभु सुधा दरस बिनु, भई सकल तन बिरह रई री ।। 3264 ।।