हरि परीच्छितहि गर्भ मँझार2 -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग बिलावल
गर्भ में परीक्षित की रक्षा तथा उनका जन्‍म




अस्‍वत्‍थामा भय करि भग्‍यौ। इहाँ लोग सब सोवत जग्‍यौ।
द्रोपदि देखि सुतनि दुख पायौ। अर्जुन सौं यह बचन सुनायौ।
अस्‍वत्‍थाम न जब लगि मारौ। तब लगि अन्‍न न मुख मैं डारो।
हरि-अर्जुन रथ परि चढ़ि धाए। अस्‍वत्‍थामा पै चलि आए।
अस्‍वत्‍थामा अस्त्र चलायौ। अर्जुन हूँ ब्रह्मास्त्र पठायौ।
उन दोउनि सौं भई लराई। अर्जुन तब दोउ लिए बुलाई।
अस्‍वत्‍थामा कौं गहि ल्‍याए। द्रौपदि सीस मूँड़ि मुकराए।
याके मारैं हत्‍या होइ। मनि लै छाँड़ौ सोभा खोइ।
अस्‍वत्‍थामा बहुरि खिस्‍याइ। ब्रह्म-अस्र कौं दियौ चलाइ।
गर्भ परीच्छित जारन गयौ। तब हरि ताहि जरन नहिं दयौ।
रूप चतुर्भुज गर्भ मँझारि। ताकौं तासौं लियो उबारि।
जनम परीच्छित कौ जब भयौ। कह्यौ, चतुर्भुज कहँ अब गयौ ?
पुनि जब हरि कौं देख्‍यौ जोइ। पाइ संतोष सुखी भयौ सोइ।
राजा जन्‍म समय की देखि। मन मैं पायौ हर्ष बिसेखि।
गर्भ प‍रीच्छित रच्‍छा करी। जोई कथा सकल बिस्‍तरी।
श्रीभगवान कृपा जिहिं करै। सूर सो मारैं काके मरै?।।289।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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