हरि न मिले माइ जनम, ऐसै, लाग्यो जान ।
चितवत मग दिवस निसा जाति जुग समान ।।
चातक पिक बचन सखी, सुनि न परत कान ।
चंदन अरु चंद किरनिं मनौ अमल भान ।।
भूषन तन तज्यौ रनहिं, आतुर ज्यौं त्रान ।
भीषम लौ सहत मदन अरजुन के बान ।।
सोपति तन सेज ‘सूर’ चल न चपल प्रान ।
दच्छिन रवि अवधि अटक इतनी जिय आन ।। 3212 ।।