हरि देखीं जुव‍ती आवत जब -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग जैतश्री


हरि देखीं जुव‍ती आवत जब।
सखनि कह्यौ तुम जाई चढ़ौ द्रुम, बैठि रहौ दुरि दुरि सब।।
चढ़े सबै द्रुम-डार ग्‍वाल-गन, सुनत स्‍याम-मुख-बानी।
धोखैं धाखैं रहे सबै हम, स्‍याम भली यह जाती।।
नव-सत साजि सिंगार जुवति सब, दधि-मटुकी लिये आवत।
सूर स्‍याम छबि देखत रीझे, मन-मन हरष बढ़ावत।।1500।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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