हरि तै भलौ सुपति सीता कौ।
जाकै बिरह जतन ए कीन्हे, सिंधु कियौ बीता कौ।
लंका जारि सकल रिपु मारे, देख्यौ मुख पुनि ताकौ।
दूत हाथ उन लिखि जु पठायौ, ज्ञान कह्यौ गीता कौ।।
तिनकौ कहा परेखौ कीजै, कुबिजा के मीता कौ।
चढे सेज सातौ सुधि बिसरी, ज्यौ पीता चीता कौ।।
करि अति कृपा जोग लिखि पठयौ, देखि डराई ताकौ।
‘सूरजदास’ प्रीति कह जानै, लोभी नवनीता कौ।।4009।।