हरि जू की बाल-छबि कहौं बरनि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नटनारायन



हरि जू की बाल-छबि कहौं बरनि।
सकल सुख की सींव, कोटि-मनोज-सोभा-हरनि।
भुज भुजंग, सरोज नैननि बदन बिधु जित लरनि।
रहे बिवरनि, सलिल, नभ, उपमा अपर दुरि डरनि।
मंजु मेचक मृदुल तनु, अनुहरत भूषन भरनि।
मनहुं सुभग सिंगार-सिसु-तरु, फरयौ अद्भुत फरनि।
चलत-पद प्रतिबिंब मनि आँगन घटुरुवनि करनि।
जलज-संपुट-सुभग-छबि भरि लेति उर जनु धरनि।
पुन्य फल अनुभवति सुतहिं बिलोकि कै नंद-घरनि।
सूर प्रभु की उर बसी किलकनि ललित लरखरनि।।109।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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