हरि कौ मारग दिन प्रति जोवति ।
चितवत रहत चकोर चंद ज्यौ, सुमिरि सुमिरि गुन रोवति ।।
पतियाँ पठवति मसि नहिं खूटति, लिखि मानहुँ धोवति ।
भूख न दिन निसि नीद हिरानी, एकौ पल नहिं सोवति ।।
जे जे बसन स्याम सँग पहिरे, ते अजहूँ नहि धोवति ।
'सूरदास' प्रभु तुम्हरे दरस बिनु, बृथा जनम सुख खोवति ।। 3403 ।।