हरि कौ बिमल जस गावति गोपँगना -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कान्हरौ



हरि कौ बिमल जस गावति गोपँगना।
मनिमय आँगन नंदराइ कौ, बाल गोपाल करैं तहँ रँगना।
गिरि-गिरि परत घुटुरुवनि रेंगत, खेलत है दोउ छगना-मगना।
धूसरि धूरि दुहूँ तन मंडित, मातु जसोदा लेति उछँगना।
बसुधा त्रिपद करत नहिं आलस तिनहिं कठिन भयौ देहरी उलँघना?
सूरदास प्रभु ब्रज-वधु निरखतिं, रुचिर हार हिय सोहत बधना।।113।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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