हरि के बराबरि बेनु, कोउ न बजावै।
जग-जीवन बिदित मुनिनि, नाच जो नचावै।।
चतुरानन पंचानन, सहसानन ध्यावै।
ग्वाल बाल लिये जमुन-कच्छ बछ चरावै।।
सुर नर मुनि अखिल लोक, कोउ न पार पावै।
तारन-तरन अगिनित गुन, निगम नेति गावै।।
तिनकौं जसुमति आँगन, ताल दै नचावै।
सूरज-प्रभु कृपा-धाम, भक्त-बस कहावै।।1218।।