हरि-मुख देभि भूले नैन।
हृदय-हरषित प्रेम गदगद, मुख न आवत बैन।।
काम-आतुर भजीं गोपी, हरि मिले तिहिं भाइ।
प्रेम बस्य कृपाल केसव, जानि लेत सुभाइ।।
परसपर मिलि हँसत रहसत, हरषि करत बिलास।
उमंगि आनंद-सिंधु उछल्यौ, स्याम कैं अभिलाष।।
मिलति इक-इक भुजनि भरि-भरि, रास-रुचि जिय आनि।
तिहिं समय सुख स्याम-स्यामा, सूर क्यौं, कहै गानि।।1036।।