हरि-मुख देखि हो नँद–नारि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग केदारौ



हरि-मुख देखि हो नँद–नारि।
महरि ऐसे सुभग सुत सौं, इतौ कोह निवारि।
सरद-मंजुल–जलज–लोचन लोल चितवनि दीन।
मनहुँ खेलत हैं परस्‍पर, मकरध्‍वज द्वै मीन।
ललित कन-संजुत कपोलनि लसत कज्‍जल अंक।
मनहुँ राजत रजनि, पूरन कला‍पति सकलंक।
वेगि बंधन छोरि, तन-मन वारि, लै हिय लाइ।
नवल स्‍याम किसोर ऊपर, सूर जन बलि जाइ।।353।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः