हम देखे इहि भाँति कन्हाई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कान्हरी


हम देखे इहि भाँति कन्हाई।
सीस सिखंड अलक विथुरे मुख, कुंडल स्रवन सुहाई।।
कुटिल भृकुटि, लोकां अनियारे, सुभग नासिका राजत।
अरुन अधर दमनावलि की दुति, दाडिमकन तन लाजत।।
ग्रीव हार मुकुना, बनमाला, बाहुदंड गजमुंड।
रोमावली सुभग बगपंगति, जाति नामिह्रद झुंड।।
कटि पट पीत, मेखला कंचन, सुभग जंघ जुग जानु।
चरनकमल नख चंद नहीं सम, ऐसे ‘सूर’ सुजानु।।1775।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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