हम तौ सब बातनि सचु पायौ।
गोद खिलाइ पिवाइ देह पय, पुनि पालनै झुलायौ।।
देखति रही फनिग की मनि ज्यौ, गुरुजन ज्यौ न झुलायौ।
अब नहिं समुझति कौन पाप तै, बिधना सो उलटायौ।।
बिन देखै पल पल नहिं छन छन, ये ही चित ही चायौ।
अबहिं कठोर भए ब्रजपतिसुत, रोवत मुँह न धुवायौ।।
तब हम दूध, दही के कारन, घर घर बहुत खिझायौ।
सो अब ‘सूर’ प्रगट ही लाग्यौ, योगऽरु ज्ञान पठायौ।।3535।।