हम तुम्हरैं नितही प्रति आवति -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग आसावरी


हम तुम्हरैं नितही प्रति आवति, सुनहु राधिका गोरी।
ऐसौ आदर कबहुँ न कीन्हौ, मेरी अलकसलोरी।।
काहैं आजु हरष जिय उपज्यौ, कहा विभव तुम पायौ।
कीधौ आजु मिले नंदनंदन, पिछलौ दुख बिसरायौ।।
उमँग्यौ प्रेम रहत नहिं रोकै, सखियनि कहति सुनावै।
'सूर' स्याम मो भवन पधारे, यह कहि कहि मन भावै।।2210।।

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