हमारै हरि हारिल की लकरी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


हमारै हरि हारिल की लकरी।
मनक्रम बचन नंदनंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।।
जागत सोवत स्वप्न दिवस निसि, कान्ह कान्ह जक री।
सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौ करुई ककरी।।
सु तौ व्याधि हमकौ लै आए, देखी सुनी न करी।
यह तौ ‘सूर' नितहिं लै सौपौ, जिनके मन चकरी।।3988।।

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