हमारे हरि चलत कहत है दूरि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी




हमारे हरि चलत कहत है दूरि।
मधुबन बसत आस हुती सजनी, अब तौ मरिहै झूरि।।
कौने कह्यौ कौन सुनि आई, किहिं रुख रथ की धूरि।
संगहिं सबै चली माधौ के, ना तरु मरहु बिसूरि।।
दच्छिन दिसि इक नगर द्वारिका, सिंधु रह्यौ भरि पूरि।
'सूरदास' अबला क्यौ जीवै, जात सजीवन मूरि।। 4250।।

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