हमारे निर्धन के धन राम -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग सारंग




हमारे निर्धन के धन राम।
चोर न लेत, घटत नहिं कबहूँ, आवत गाढ़ै काम।
जल नहिं बूड़त, आगिनि न दाहत, है ऐसौ हरि-नाम।
बैकुँठनाथ सकल सुख दाता, सूरदास-सुख-धाम।।92।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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