हमारे देहु मनोहर चीर।
काँपतिं सीत तनहिं अति ब्यापत, हिम सम जमुना-नीर।।
मानहिंगी उपकार रावरौ, करौ कृपा बलबीर।
अतिहीं दुखित प्रान, बपु परसत प्रबल प्रचंड समीर।।
हम दासी, तुम नाथ हमारे, चितवतिं जल मैं ठाढ़ी।
मानहु बिकच कुमुदिनी ससि सौं, अधिक प्रीति उर बाढ़ी।।
जौ तुम हमैं नाथ कै जान्यौ, यह हम माँगैं देहु।
जल तैं निकसि आइ बाहिर ह्वै, बसन वापनै लेहु।।
कर धरि सीस गईं हरि-सन्मुख, मन मैं करि आनंद।
ह्वै कृपाल सूरज-प्रभु अंबर दीन्हे परमानंद।।792।।