हमारी नाहिं जानत पीर -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी


 
हमारी नाहिं जानत पीर।
हास बिलास प्रेम रस रहि गयौ, वा जमुना के तीर।।
जा दिन तै ऊधौ हरि बिछुरे, प्रान धरत नहीं धीर।
हमरी विथा जाइ तुम कहियौ, सूखी सकल सरीर।।
जो पाती तुम आनि दई है, देखि चल्यौ दृग नीर।
'सूरदास' प्रभु आनि मिलावहु, प्रान रहै बलबीर।।3677।।

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