हमरे प्रथमहि नेह नैन कौ।
वह रस रूप नीर कहँ पैयत, यह पय ज्ञानऽरु बैन कौ।।
जानति लोचन भरि नहिं देखे, तन रस कोटिक मैन कौ।
तू बकवाद करै केतौ ही, नहिं सुख निमिषहु रैन कौ।।
कह जानै रस सागर की गति, पट्पद बसज ऐन कौ।
'सूरदास' प्रभु इतने कोमल, अलि उपज्यौ दुख दैन कौ।।3556।।