हमतै कछु सेवा न भई।
धोखै ही धोखै जु रहे हम, जाने नाहिं त्रिलोकमई।।
चरन पकरि कर बिनती करिवौ, सब अपराध छमा कीवै।
ऐसौ भाग होइगौ कबहूँ, स्याम गोद पुनि मैं लीवै।।
कहै नंद आगै ऊधौ के, एक बेर दरसन दीवे।
'सूरदास' स्वामी मिलि अबकै, सबै दोष निज गत कीवे।।3474।।